गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित ‘रामचरित मानस’ की चौपाई ‘कर्म प्रधान विश्व रचि राखा, जो जस करहि सो तस फल चाखा’ में उन्होंने कर्म के महत्त्व को स्पष्ट किया है। इसका अर्थ है कि इस संसार में जो जैसा कर्म करता है, उसे वैसा ही फल प्राप्त होता है। यह विचार न केवल प्राचीन काल में महत्त्वपूर्ण था, बल्कि आज भी हमारे जीवन में यही सत्य लागू होता है। ‘कर्मयुद्ध’ पुस्तक की कविताएँ इस विचार को और भी स्पष्ट करती हैं। ये हमें प्रेरणा देती हैं कि हमारे सामने चाहे जितनी भी कठिनाइयाँ आ जाएँ, हमें अपने कर्म के रास्ते से कभी नहीं हटना चाहिए। अगर हम सच्चे कर्म करते हैं, तो जीवन में सफलता और संतोष प्राप्त कर सकते हैं। यह पुस्तक जीवन के �... See more
गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित ‘रामचरित मानस’ की चौपाई ‘कर्म प्रधान विश्व रचि राखा, जो जस करहि सो तस फल चाखा’ में उन्होंने कर्म के महत्त्व को स्पष्ट किया है। इसका अर्थ है कि इस संसार में जो जैसा कर्म करता है, उसे वैसा ही फल प्राप्त होता है। यह विचार न केवल प्राचीन काल में महत्त्वपूर्ण था, बल्कि आज भी हमारे जीवन में यही सत्य लागू होता है। ‘कर्मयुद्ध’ पुस्तक की कविताएँ इस विचार को और भी स्पष्ट करती हैं। ये हमें प्रेरणा देती हैं कि हमारे सामने चाहे जितनी भी कठिनाइयाँ आ जाएँ, हमें अपने कर्म के रास्ते से कभी नहीं हटना चाहिए। अगर हम सच्चे कर्म करते हैं, तो जीवन में सफलता और संतोष प्राप्त कर सकते हैं। यह पुस्तक जीवन के कर्म के प्रति हमारी भूमिका को समझाते हुए बताती है कि बिना कर्म किए कुछ भी प्राप्त नहीं किया जा सकता। यह प्रेरणा देती है कि हमें अपने कर्मयुद्ध के मैदान में डटे रहना चाहिए और जो भी हम चाहते हैं, उसके लिए लगातार हमें मेहनत करते रहना चाहिए। ‘कर्मयुद्ध’ की कविताएँ बताती हैं कि अगर हम अपने कर्मों से भागेंगे, तो हम वहीं ठहरे रह जाएँगे और जीवन के अंत समय में हमें कोई सच्ची उपलब्धि नहीं मिल पाएगी। ऐसी प्रेरणा देने के साथ ही यह पुस्तक हमें कर्म के महत्त्व को समझने और अपनाने के लिए एक ठोस मार्ग भी दिखाती है।