यह पुस्तक जाति प्रथा और अस्पृश्यता की जड़ों को उजागर करती है। अम्बेडकर जी, जो स्वयं अछूत जाति से थे, ने इस पुस्तक में अछूतों के जीवन, उनके साथ होने वाले भेदभाव और उत्पीड़न का वर्णन किया है।
पुस्तक में वेदों, पुराणों और मनुस्मृति जैसे धार्मिक ग्रंथों का विश्लेषण करते हुए यह दर्शाते हैं कि कैसे इन ग्रंथों ने अछूतों को 'अशुद्ध' और 'हीन' घोषित कर उन्हें समाज से अलग-थलग कर दिया।
साथ ही, अम्बेडकर जी यह भी बताते हैं कि कैसे औपनिवेशिक शासन ने इस प्रथा को और मजबूत किया।
यह पुस्तक अछूतों के संघर्षों और उनके अधिकारों के लिए किए गए आंदोलनों का भी दस्तावेजीकरण करती है। अछूत कौन थे और वे अछूत कैसे बने' जाति प्रथा और अस्पृश्यत�... See more
यह पुस्तक जाति प्रथा और अस्पृश्यता की जड़ों को उजागर करती है। अम्बेडकर जी, जो स्वयं अछूत जाति से थे, ने इस पुस्तक में अछूतों के जीवन, उनके साथ होने वाले भेदभाव और उत्पीड़न का वर्णन किया है।
पुस्तक में वेदों, पुराणों और मनुस्मृति जैसे धार्मिक ग्रंथों का विश्लेषण करते हुए यह दर्शाते हैं कि कैसे इन ग्रंथों ने अछूतों को 'अशुद्ध' और 'हीन' घोषित कर उन्हें समाज से अलग-थलग कर दिया।
साथ ही, अम्बेडकर जी यह भी बताते हैं कि कैसे औपनिवेशिक शासन ने इस प्रथा को और मजबूत किया।
यह पुस्तक अछूतों के संघर्षों और उनके अधिकारों के लिए किए गए आंदोलनों का भी दस्तावेजीकरण करती है। अछूत कौन थे और वे अछूत कैसे बने' जाति प्रथा और अस्पृश्यता को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण पुस्तक है। यह पुस्तक सामाजिक न्याय और समानता के लिए संघर्ष करने वालों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी है।
पुस्तक के कुछ महत्वपूर्ण पहलू
- जाति प्रथा और अस्पृश्यता की ऐतिहासिक और सामाजिक जड़ों का विश्लेषण
- अछूतों के जीवन और उनके साथ होने वाले भेदभाव का वर्णन ।
- धार्मिक ग्रंथों और औपनिवेशिक शासन की भूमिका का आलोचनात्मक मूल्यांकन ।
- अछूतों के संघर्षों और अधिकारों के लिए आंदोलनों का दस्तावेजीकरण।
- सामाजिक न्याय और समानता के लिए प्रेरणा ।