‘दिमागी गुलामी’ यह एक प्रभावशाली पुस्तक है| प्रसिद्ध भारतीय लेखक और विचारक राहुल सांकृत्यायन द्वारा लिखी हुई यह पुस्तक सामाजिक चेतना बढ़ाने हेतु महत्त्वपूर्ण समझी जाती है| यह पुस्तक भारत के सामाजिक और मानसिक दासता के विभिन्न पहलुओं और इसके भारतीय समाज प्रभावों का वर्णन करती है| राहुल सांकृत्यायन ने इस पुस्तक में दिमागी दासता के जटिल विषयों को सरल तरीके से प्रस्तुत किया है| इसमें लेखक की गहरी चिंतनशीलता और समाज की सच्चाई का एक प्रखर विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है, जिससे पाठकों को उस समय के भारतीय समाज की मिलती है|
राहुल सांकृत्यायन ने आत्मचिंतन और जागरूकता को मानसिक दासता से मुक्ति के साधन के रूप में प्रस�... See more
‘दिमागी गुलामी’ यह एक प्रभावशाली पुस्तक है| प्रसिद्ध भारतीय लेखक और विचारक राहुल सांकृत्यायन द्वारा लिखी हुई यह पुस्तक सामाजिक चेतना बढ़ाने हेतु महत्त्वपूर्ण समझी जाती है| यह पुस्तक भारत के सामाजिक और मानसिक दासता के विभिन्न पहलुओं और इसके भारतीय समाज प्रभावों का वर्णन करती है| राहुल सांकृत्यायन ने इस पुस्तक में दिमागी दासता के जटिल विषयों को सरल तरीके से प्रस्तुत किया है| इसमें लेखक की गहरी चिंतनशीलता और समाज की सच्चाई का एक प्रखर विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है, जिससे पाठकों को उस समय के भारतीय समाज की मिलती है|
राहुल सांकृत्यायन ने आत्मचिंतन और जागरूकता को मानसिक दासता से मुक्ति के साधन के रूप में प्रस्तुत किया है| उन्होंने तर्क, ज्ञान और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाने की सलाह दी है| राहुल सांकृत्यायन की लेखन शैली प्रखर और स्पष्ट है| उनके विचार विद्वत्तापूर्ण होते हुए भी सरल में प्रस्तुत किए गए हैं, जिससे पाठक आसानी से पुस्तक के मर्म को समझ सकते हैं| उन्होने अपनी लेखनी के माध्यम से यह स्पष्ट करने की कोशिश की है कि मानसिक गुलामी का सबसे बड़ा कारण ज्ञान और तर्क की कमी है|
‘दिमागी गुलामी’ एक प्रेरणादायक, ज्ञानवर्धक और विचारोत्तेजक है जिससे पाठकों को एक व्यापक दृष्टिकोण प्राप्त होता है| यह पुस्तक पाठकों को आत्मनिरीक्षण करने और मानसिक स्वतंत्रता की दिशा में कदम बढ़ाने के लिए प्रेरित करता है| ‘दिमागी गुलामी’ न केवल भारतीय समाज के लिए बल्कि वैश्विक स्तर पर भी प्रासंगिक है|
"राहुल सांकृत्यायन द्वारा लिखी गयी 'वोल्गा से गंगा' इस पुस्तक में ६००० ई. पू. से १९४२ तक मानव समाज के ऐतिहासिक, आर्थिक, राजनीतिक आधारों का बीस कहानियों के रूप में चित्रण किया गया है। यह कहानियाँ मानवी सभ्यता के विकास की पूरी कडी को पाठकों के सामने प्रस्तुत करने में सक्षम है। इस कहानी संग्रह के विषय में वे खुद ही लिखते है कि, ""लेखक की एक-एक कहानी के पीछे उस युग के संबंध की वह भारी सामग्री है, जो दुनिया की कितनीही भाषाओं, तुलनात्मक भाषाविज्ञान, मिट्टी, पत्थर, तांबे, पीतल, लोहे पर सांकेतिक वा लिखित साहित्य अथवा अलिखित गीतों, कहानियों, रीतिरिवाजों टोटके-टोना में पाई जाती है।"" इससे स्पष्ट है कि, यह पुस्तक अपनी भूमिका में ही अपनी ऐतिहासिक महत्त्व और विशेषता को प्रकट कर देती है। इस पुस्तक में आपको अद्भुत रचना का आनंद प्राप्त हो सकता है।
बौद्ध कालीन जीवन, यवन यात्रियों के भारत आगमन की यादें इसमें अलक उठती हैं।
मध्ययुग से वर्तमान युग तक की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक प्रवृत्तियों को व्यक्त करने वाली यह कहानियाँ हमे वर्तमान तक के सफर का एहसास दिलाती है। इन कहानियों में ऐतिहासिक प्रामाणिकता इस हद तक शामिल है कि कथा और इतिहास में अंतर कर पाना असंभव सा लगता है। मातृसत्तात्मक समाज में स्त्री वर्चस्व और स्त्री सम्मान को व्यक्त करने वाली यह बेजोड रचना है। राहुल सांकृत्यायन ने बड़े कौशल से इस कृति में मातृसत्तात्मक समाज को पितृसत्तात्मक समाज में बदलते दिखाया है और इसके लिए उन्होंने ऐतिहासिक घटनाओं को आधार बनाया है।"