अखिलेंद्र मिश्र जी का रिश्ता रंगकर्म और फिल्मों से है। वे सिद्ध अभिनेता तो हैं ही, हाल के वर्षों में उनकी काव्यकृति भी प्रकाशित हो कर आई तो उनके कवि रूप का भी भान हुआ। उनका वाचिक इतना उदात्त और आवेगों संवेगों भरा होता है कि वे दूर से ही लोगों का ध्यानाकर्षण कर लेते हैं। 'आत्मोत्थानम्' में उन्होंने ऐसी ही कविताओं का समावेश किया है जो मनुष्य के उर्ध्वगामी विकास में सहभागी हो सकें।अखिलेंद्र मिश्र जी का यह काव्य हमारी भाषा का एक उच्चसूचकांक है। इसे पढ़ कर बाँच कर अपनी वाचिक गुणवत्ता को बढ़ाया जा सकता है। सच्चे अर्थों में वे हमारी भारतीय अस्मिता व संस्कृति के कवि हैं।