'बूढ़ा आदमी और समुद्र' उपन्यास एक बूढ़े गरीब मछुआरे के जीवन-संघर्ष की कहानी है। मछली पकडऩे जाना, मछली पकडऩे की कोशिश करना, उस कोशिश में कामयाब होना, फिर इस सफलता को अंजाम तक लाने की जद्दोजहद का नाम है 'बूढ़ा आदमी और समुद्र'।
एक मछुआरे के जीवन-संघर्ष की यह दास्तान काल, समय और सीमा के बंधन से परे है। यह मछुआरा दुनिया के हर कोने में मौजूद है— अपने परिवेश से जूझता हुआ बिना किसी आक्रोश के, बिना किसी तिरस्कार भाव के। शायद यह मछुआरा एक विकसित आत्मा भी है। उसके सारे मनोभाव तात्कालिक हैं। वह समुद्र से, चिडिय़ों से और मछलियों से संवाद करता है। विषम परिस्थितियाँ उसे विचलित नहीं करतीं। उसकी जिजीविषा मरजीवड़े से कम नहीं।
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'बूढ़ा आदमी और समुद्र' उपन्यास एक बूढ़े गरीब मछुआरे के जीवन-संघर्ष की कहानी है। मछली पकडऩे जाना, मछली पकडऩे की कोशिश करना, उस कोशिश में कामयाब होना, फिर इस सफलता को अंजाम तक लाने की जद्दोजहद का नाम है 'बूढ़ा आदमी और समुद्र'।
एक मछुआरे के जीवन-संघर्ष की यह दास्तान काल, समय और सीमा के बंधन से परे है। यह मछुआरा दुनिया के हर कोने में मौजूद है— अपने परिवेश से जूझता हुआ बिना किसी आक्रोश के, बिना किसी तिरस्कार भाव के। शायद यह मछुआरा एक विकसित आत्मा भी है। उसके सारे मनोभाव तात्कालिक हैं। वह समुद्र से, चिडिय़ों से और मछलियों से संवाद करता है। विषम परिस्थितियाँ उसे विचलित नहीं करतीं। उसकी जिजीविषा मरजीवड़े से कम नहीं।
प्रकृति और मनुष्य के अंतर्संबंधों को बयान करता हुआ अर्नेस्ट हेमिंग्वे का यह उपन्यास निश्चित ही एक कालजयी रचना है तो फिर हम हिंदी के पाठक इससे क्यों वंचित रहते। अस्तु!