9789355626103 : MAHAKUMBHA: Sanatan Sanskriti ki Ajasra Chetnaकुंभ भारतीय समाज का ऐसा पर्व है, जिसमें हमें एक ही स्थान पर पूरे भारत के दर्शन होते हैं। हर बारह वर्ष बाद शंकराचार्यों के नेतृत्व में हमारे मनीषी देश की नीति और नियम तय कर समाज को संचालित करते थे। ये नियम सनातन परंपरा को अक्षुण्ण रखने के साथ-साथ समय की माँग के अनुसार भी बनते थे।कुंभ पर्व के दौरान माँ गंगा में स्नान का महत्त्व भी पुण्यफल देने वाला है। केवल स्नान कर लेने से कुंभ पर्व का उद्देश्य पूरा नहीं होता, जब तक वैचारिक आदान-प्रदान न हो और देश के विभिन्न प्रांतों से विविध भाषा-भाषी आध्यात्मिक उन्नयन, देश के उत्थान की चर्चा, धर्म की चर्चा, अपनी पुरातन संस्कृति को कैसे जीवित रखा जाए तथा स... See more
9789355626103 : MAHAKUMBHA: Sanatan Sanskriti ki Ajasra Chetnaकुंभ भारतीय समाज का ऐसा पर्व है, जिसमें हमें एक ही स्थान पर पूरे भारत के दर्शन होते हैं। हर बारह वर्ष बाद शंकराचार्यों के नेतृत्व में हमारे मनीषी देश की नीति और नियम तय कर समाज को संचालित करते थे। ये नियम सनातन परंपरा को अक्षुण्ण रखने के साथ-साथ समय की माँग के अनुसार भी बनते थे।कुंभ पर्व के दौरान माँ गंगा में स्नान का महत्त्व भी पुण्यफल देने वाला है। केवल स्नान कर लेने से कुंभ पर्व का उद्देश्य पूरा नहीं होता, जब तक वैचारिक आदान-प्रदान न हो और देश के विभिन्न प्रांतों से विविध भाषा-भाषी आध्यात्मिक उन्नयन, देश के उत्थान की चर्चा, धर्म की चर्चा, अपनी पुरातन संस्कृति को कैसे जीवित रखा जाए तथा समाज को नई दृष्टि देकर उसका मार्गदर्शन कैसे किया जाए आदि पर चर्चा न करें।
9789355622884 : Nathpanth Ka Itihasमहात्मा बुद्ध के बाद भारत में सामाजिक पुनर्जागरण का शंखनाद महायोगी गोरखनाथ ने किया। गोरखनाथ भारतीय इतिहास में ऐसे तपस्वी हैं, जिन्होंने विशुद्ध योगी एवं तपस्वी होते हुए भी सामाजिक-राष्ट्रीय चेतना का नेतृत्व किया। उन्होंने नाथपन्थ का पुनर्गठन सामाजिक पुनर्जागरण के लिए किया। पारलौकिक जीवन के साथ-साथ भौतिक जीवन का सामंजस्य बिठाने वाले इस महायोगी ने भारतीय समाज में सदाचार, नैतिकता, समानता एवं स्वतंत्रता की वह लौ प्रज्ज्वलित की, जिसकी लपटें जाति-पाँति, ऊँच-नीच, छुआछूत, भेदभाव, अमीरी-गरीबी, पुरुष-स्त्री, विषमताओं और क्षेत्रीयतावाद जैसी प्रवृत्तियों को निरंतर जलाती रहीं। नाथपन्थ के विचार-दर्शन ने एक ऐसी योगी-परंपरा को जन्म दिया, जिसने भारतीय संस्कृति के एकाकार सामाजिक चिंतन को ही अपना उद्देश्य बना दिया।
9789389471946 : Hanumat Kautuk An Recap of Sunderkand Hanuman Stutiश्रीमद्वाल्मीकि रामायण और श्रीरामचरितमानस को केंद्र में रखकर अध्यात्म, कंब आदिरामायण, लोक-परंपराओं, विश्वासों और इतिहास-भूगोल की अवधारणाओं को सहेजते हुए, काव्य-परंपरा, साहित्य, शब्द-संपदा और संवेगों का अनुशीलन इस पुस्तक में किया गया है। अनेक ग्रंथों में वर्णित कथाओं की एक सूत्रता, उनके परस्पर भेद और उनकी युक्ति-तर्क प्रमाण उद्धरणों के साथ द्विवेदीजी ने प्रस्तुत किए हैं।युगों में प्रवाहित रामकथा में मानव-चेतना के विकास-क्रम से आए परिवर्तन, अलग-अलग भाषा- संस्कृतियों में आकारित होता हुआ, उसका स्वर और जीवन की चिंताओं को सहेजती, उनका उत्तर खोजती रामकथा की सर्वहितैषिणी वृत्ति के अनेक सुंदर दृश्य इस पुस्तक में बारंबार दृष्टिगत होते हैं।यह एक रामायण पाठ जैसा तो है ही, रामायण पाठ की प्रेरणा भी है, जिसे लेखक की सफलता के रूप में देखा जाना चाहिए। संस्कृत भाषा और आर्ष प्रतिपादन शैली से दूर होते गए लोक को सहज और सामाजिक निर्वचन के माध्यम से रामकथा के तत्त्वों से परिचित कराना एक महत्त्वपूर्ण कार्य है। यह परंपरा का पाठ है।