कुम्भ पर्व भारतीय संस्कृति की समग्र अभिव्यक्ति है। प्राचीन काल से लेकर आज तक कुंभ पर्व भारत की समस्त धार्मिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक प्रगति के प्रचार-प्रसार का माध्यम रहा है। यह पर्व प्राचीन काल में तपश्चर्या, धार्मिक जागरण, दान परंपरा से लेकर आधुनिक काल में संन्यासी विद्रोह, 1857 की क्रांति और स्वतंत्रता संघर्ष जैसे प्रकरणों का जनक रहा है। यहाँ जिस व्यक्ति, विचारधारा व व्यवस्था को मान्यता मिल जाती है, उसे समस्त भारतवर्ष में प्रामाणिकता के साथ स्वीकारा जाता है। कुंभ के इन्हीं तात्त्विक विशेषताओं के कारण संपूर्ण विश्व से करोड़ों श्रद्धालु सहज भाव से यहाँ प्रतिभाग करने आते रहे हैं। इक्कीसवीं सदी में कुंभ �... See more
कुम्भ पर्व भारतीय संस्कृति की समग्र अभिव्यक्ति है। प्राचीन काल से लेकर आज तक कुंभ पर्व भारत की समस्त धार्मिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक प्रगति के प्रचार-प्रसार का माध्यम रहा है। यह पर्व प्राचीन काल में तपश्चर्या, धार्मिक जागरण, दान परंपरा से लेकर आधुनिक काल में संन्यासी विद्रोह, 1857 की क्रांति और स्वतंत्रता संघर्ष जैसे प्रकरणों का जनक रहा है। यहाँ जिस व्यक्ति, विचारधारा व व्यवस्था को मान्यता मिल जाती है, उसे समस्त भारतवर्ष में प्रामाणिकता के साथ स्वीकारा जाता है। कुंभ के इन्हीं तात्त्विक विशेषताओं के कारण संपूर्ण विश्व से करोड़ों श्रद्धालु सहज भाव से यहाँ प्रतिभाग करने आते रहे हैं। इक्कीसवीं सदी में कुंभ पर्व के सामाजिक-सांस्कृतिक इतिहास को संकलित करने का प्रचलन बढ़ा है। इस सन्दर्भ में समृद्ध साहित्यों का सृजन भी हुआ, किंतु तथ्यों में पुनरावृत्ति की विसंगति होने के कारण कुंभ पर्व के महान आयोजन को अपेक्षित न्याय नहीं मिल पाया; अतः इन्हीं विसंगतियों को दूर करने के उद्देश्य से लेखक ने प्रयाग, हरिद्वार एवं उज्जैन कुंभ आयोजन का तुलनात्मक अध्ययन करते हुए इस पुस्तक का लेखन कार्य किया है। यह पुस्तक कुम्भ पर्व पर लिखे गए अन्य पुस्तकों से सर्वथा भिन्न है। कुमार आदित्य इलाहाबाद विश्वविद्यालय से मानव विज्ञान में डी. फिल हैं। इन्होंने इस पुस्तक का लेखन एक दशक के विस्तृत अध्ययन व व्यापक अवलोकन के उपरांत किया है। यह कुम्भ लेखन के प्रतिमानों का बदलाव है। ऐसी आशा है कि पाठक और शोधार्थी वर्ग पुस्तक अध्ययन के उपरांत कुम्भ के नए विमर्शों से अवगत होंगे।