नई पीढ़ी के लिए मास्टर कृष्णलाल जी के वैचारिक अभिभाषणों के मूल में जो मुख्य विषय होता था वो था चरित्र निर्माण। अपनी प्रशासनिक सेवाओं से सेवानिवृत्ति के अवसर पर स्कूल में विद्यार्थियों को सच्चरित्र बनने और साथी शिक्षकों को विद्यार्थियों में चरित्र निर्माण करने पर ज़ोर देते हुए 40 मिनट का अति शालीन मगर प्रभावशाली भाषण उन्होंने दिया था जिसका प्रत्यक्षदर्शी संपादक भी थे। अमर्यादित व्यवहार या कोई भी ऐसी चीज़ उन्हें किसी की भी और किसी भी क़ीमत पर सहनीय नहीं होती थी। ‘कब होगी सुख-भोर’ मास्टर कृष्णलाल जी की एक अनुपम और अमर कृति है जिसे संपादक ताराचंद 'नादान' अपनी भावांजलि के रूप में आप सभी को सौंप रहे हैं ।