मैं इन धम्मपद के वचनों को तराश रहा हूं, तुम्हारे योग्य बना रहा हूं। यह धम्मपद का पुनर्जन्म है। यह धम्मपद को नई भाषा, नया अर्थ, नई भंगिमा, नई देह, नए प्राण देने का प्रयास है और जब फिर से जन्म हो जाए धम्मपद का, जैसे बुद्ध आज बोल रहे हों, तभी तुम्हारी आत्मा में संवेग होगा, तभी तुम्हारी आत्मा में रोमांच होगा। तभी तुम आंदोलित होओगे। तभी तुम कंपोगे - डोलोगे। ओशो द्वारा भगवान बुद्ध की वाणी ‘धम्मपद’ पर दिए दस अमृत प्रवचनों का पहला भाग। इसमें ओशो ने दुख को रेखांकित किया है। वह भीतर के दुख की बात करते हुए व्यक्ति के ‘ख़ुद’ को कारण बताते हैं। इसी तरह सुख के लिए भी व्यक्ति को ही कारण मानने पर ज़ोर देते हैं। इसे बाहर से तोलने को उन्... See more
मैं इन धम्मपद के वचनों को तराश रहा हूं, तुम्हारे योग्य बना रहा हूं। यह धम्मपद का पुनर्जन्म है। यह धम्मपद को नई भाषा, नया अर्थ, नई भंगिमा, नई देह, नए प्राण देने का प्रयास है और जब फिर से जन्म हो जाए धम्मपद का, जैसे बुद्ध आज बोल रहे हों, तभी तुम्हारी आत्मा में संवेग होगा, तभी तुम्हारी आत्मा में रोमांच होगा। तभी तुम आंदोलित होओगे। तभी तुम कंपोगे - डोलोगे। ओशो द्वारा भगवान बुद्ध की वाणी ‘धम्मपद’ पर दिए दस अमृत प्रवचनों का पहला भाग। इसमें ओशो ने दुख को रेखांकित किया है। वह भीतर के दुख की बात करते हुए व्यक्ति के ‘ख़ुद’ को कारण बताते हैं। इसी तरह सुख के लिए भी व्यक्ति को ही कारण मानने पर ज़ोर देते हैं। इसे बाहर से तोलने को उन्होंने धोखा बताया।