उत्तराखण्ड की धार्मिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक परम्पराओं के सम्बन्ध में उल्लेख्य है कि 'देवभूमि' के गौरव से गौरवान्वित भारतवर्ष का यह मध्यहिमालयी भूभाग अनादिकाल से ही यहां के मूल निवासी- यक्ष, गन्धर्व, किन्नर, कोल किरात आदि के अतिरिक्त समय-समय पर अन्यान्य प्रजातियों, जातियों, धर्मों, सम्प्रदायों एवं संस्कृतियों से सम्बद्ध मानव समूहों को अपने प्राकृतिक सौन्दर्य, समृद्ध वनस्पति, जैव विविधता, स्वच्छ एवं शान्त वातावरण के कारण अपनी ओर आकृष्ट करता रहा है। फलतः भारतीय उपमहाद्वीप एवं मध्य एशिया के विभिन्न क्षेत्रों में अंकुरित एवं पोषित कोई ऐसी धार्मिक एवं सांस्कृतिक विधा नहीं जिसके तत्व यहां पर न पाये जाते हो... See more
उत्तराखण्ड की धार्मिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक परम्पराओं के सम्बन्ध में उल्लेख्य है कि 'देवभूमि' के गौरव से गौरवान्वित भारतवर्ष का यह मध्यहिमालयी भूभाग अनादिकाल से ही यहां के मूल निवासी- यक्ष, गन्धर्व, किन्नर, कोल किरात आदि के अतिरिक्त समय-समय पर अन्यान्य प्रजातियों, जातियों, धर्मों, सम्प्रदायों एवं संस्कृतियों से सम्बद्ध मानव समूहों को अपने प्राकृतिक सौन्दर्य, समृद्ध वनस्पति, जैव विविधता, स्वच्छ एवं शान्त वातावरण के कारण अपनी ओर आकृष्ट करता रहा है। फलतः भारतीय उपमहाद्वीप एवं मध्य एशिया के विभिन्न क्षेत्रों में अंकुरित एवं पोषित कोई ऐसी धार्मिक एवं सांस्कृतिक विधा नहीं जिसके तत्व यहां पर न पाये जाते हों। प्रसंगसंगति से इस क्षेत्र को 'देवभूमि' कहे जाने के एवं प्रस्तुत ग्रन्थ में विवेचित लोकदेवताओं के विषय में यहां पर यह स्पष्ट कर दिया जाना भी आवश्यक है कि सामान्यतः जनसाधारण इन दोनों में प्रयुक्त देव (देवता) शब्दों का अभिधेयार्थ केवल पौराणिक देवकुल की देवशक्तियों से ही जोड़ता है। सम्बद्ध क्षेत्रों से बाहर के बहुत कम लोग जानते हैं कि इस क्षेत्र में मान्य गिने-चुने पौराणिक देवताओं के अतिरिक्त सम्पूर्ण क्षेत्र के चप्पे-चप्पे पर विविध नाम-रूपात्मक लोकदेवताओं का ऐसा लटिल जाल बिछा है कि उन सबका परिगणन कर पाना अथवा उनका विवरण दे पाना यदि असम्भव नहीं तो सरल भी नहीं है। इनकी धरातलीय स्थिति ऐसी है कि एक क्षेत्र या घाटी के लोगों को अन्य क्षेत्रों के बहुमान्य देवी-देवताओं के विषय में कोई जानकारी ही नहीं होती है। यहां का कोई पर्वत शिखर, नदी नाला, गुहागर्त, यहां तक कि कोई विशाल वृक्ष या पाषाण शिला, ऐसी नहीं जो किसी देवी-देवता से सम्बद्ध न हो। वस्तुतः देखा जाए तो इसे 'देवभूमि' कहे जाने की सार्थकता पौराणिक देवकुलों की स्थिति के कारण नहीं, अपितु इन्हीं पग-पग पर अवस्थित लोकदेवताओं की विद्यमानता से अधिक संगत है।