2011 में ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’, 2008 में ‘व्यास सम्मान’ और 1969 में ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ से सम्मानित श्रीलाल शुक्ल की यह कृति हिन्दी का श्रेष्ठ उपन्यास है। इसका कथानक और शैली लेखक की रचनाशीलता और जीवन्तता का उत्तम उदाहरण है। प्रत्येक पात्र अपना अलग-अलग व्यक्तित्व रखता है और जीवन के विभिन्न आयामों का प्रतिनिधित्व करता है। उत्तर प्रदेश के एक अंचल विशेष का इसमें मोहक चित्रण हुआ है। अज्ञातवास में मनुष्य की अपने आपको खोजने की कहानी प्रतीकात्मक रूप में कही गयी है। 2008 में उनके साहित्यिक योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्म भूषण’ से नवाज़ा।