जन्म: 1904 शिक्षा: 1929 में लखनऊ विश्वविद्यालय से एम.ए., 1946 में पी-एच.डी. तथा में डी.लिट् की उपाधियाँ प्राप्त कीं। गतिविधियाँ: 1940 तक मथुरा के पुरातत्व संग्रहालय के अध्यक्ष पद पर रहे। 1946 से लेकर 1951 तक सेंट्रल एशियन एक्टिविटीज म्यूजियम के सुपरिंटेंडेंट और भारतीय पुरातत्व विभाग के अध्यक्ष पद पर कार्य। 1951 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कॉलेज ऑफ इंडोलॉजी में प्रोफेसर नियुक्त हुए। 1952 में लखनऊ विश्वविद्यालय में राधाकुमुद मुखर्जी व्याख्यान-निधि की ओर से व्याख्याता नियुक्त हुए। आप भारतीय मुद्रा परिषद् (नागपुर), भारतीय संग्रहालय परिषद् (पटना) और ऑल इंडिया ओरियंटल कांग्रेस, फाइन आर्ट सेक्सन (मुम्बई) आदि संस्थाओं के सभापति भ... See more
जन्म: 1904 शिक्षा: 1929 में लखनऊ विश्वविद्यालय से एम.ए., 1946 में पी-एच.डी. तथा में डी.लिट् की उपाधियाँ प्राप्त कीं। गतिविधियाँ: 1940 तक मथुरा के पुरातत्व संग्रहालय के अध्यक्ष पद पर रहे। 1946 से लेकर 1951 तक सेंट्रल एशियन एक्टिविटीज म्यूजियम के सुपरिंटेंडेंट और भारतीय पुरातत्व विभाग के अध्यक्ष पद पर कार्य। 1951 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कॉलेज ऑफ इंडोलॉजी में प्रोफेसर नियुक्त हुए। 1952 में लखनऊ विश्वविद्यालय में राधाकुमुद मुखर्जी व्याख्यान-निधि की ओर से व्याख्याता नियुक्त हुए। आप भारतीय मुद्रा परिषद् (नागपुर), भारतीय संग्रहालय परिषद् (पटना) और ऑल इंडिया ओरियंटल कांग्रेस, फाइन आर्ट सेक्सन (मुम्बई) आदि संस्थाओं के सभापति भी रहे। प्रकाशित कृतियाँ: पृथ्वी-पुत्र (1949), उरुज्योति (1952), कला और संस्कृति (1952), कल्पवृक्ष (1953), माता भूमि (1953), हर्षचरित - एक सांस्कृतिक अध्ययन (1953), पोद्दार अभिनन्दन ग्रन्थ (1953), भारत की मौलिक एकता (1954), मलिक मुहम्मद जायसी: पदमावत (1955), पाणिनिकालीन भारतवर्ष (1955), भारतसावित्री (1957), कादम्बरी (1958)। राधाकुमुद मुखर्जीकृत हिन्दू सभ्यता का अनुवाद (1955)। शृंगारहाट का सम्पादन डॉ. मोती चन्द के साथ मिलकर। कालिदास के मेघदूत एवं बाणभट्ट के हर्षचरित की नवीन पीठिका प्रस्तुत की। भारतीय साहित्य और संस्कृति के गम्भीर अध्येता के रूप में इनका नाम देश के विद्वानों में अग्रणी। निधन: 1966.