मुझे अलार्म घड़ी की ज़रूरत नहीं है। मेरे विचार मुझे जगाते हैं। -रे ब्रैडबरी किसी भी पाठक के लिए ये पन्ना कितना ज़रूरी है, कहा नहीं जा सकता। लेकिन एक लेखक के लिए ये पन्ना बहुत ज़रूरी है। जहाँ वो कथा पात्रों की ज़िंदगी से अलग हट कर सीधे-सीधे अपने पाठकों के साथ संवाद करता है। पात्रों के साथ बेचैनी झेलने, नींदों को वारने, तर्क -वितर्क के दुरूह महीनों, और कई ड्राफ्ट से गुज़रने के बाद ये वो समय होता है, जब संवेदना के दो छोरों पर खड़े लेखक और पाठक एक हो जाते हैं। ये सहज जीवन से उठी हुई कहानियाँ है। जहाँ के हँसते-रोते पात्र आपके अपने हैं। इसलिए कहानियों की चेतना में मानवीय मूल्य, समानता, संघर्ष, स्त्री, पुरुष, शिक्षा, प्रकृति, पशु-�... See more
मुझे अलार्म घड़ी की ज़रूरत नहीं है। मेरे विचार मुझे जगाते हैं। -रे ब्रैडबरी किसी भी पाठक के लिए ये पन्ना कितना ज़रूरी है, कहा नहीं जा सकता। लेकिन एक लेखक के लिए ये पन्ना बहुत ज़रूरी है। जहाँ वो कथा पात्रों की ज़िंदगी से अलग हट कर सीधे-सीधे अपने पाठकों के साथ संवाद करता है। पात्रों के साथ बेचैनी झेलने, नींदों को वारने, तर्क -वितर्क के दुरूह महीनों, और कई ड्राफ्ट से गुज़रने के बाद ये वो समय होता है, जब संवेदना के दो छोरों पर खड़े लेखक और पाठक एक हो जाते हैं। ये सहज जीवन से उठी हुई कहानियाँ है। जहाँ के हँसते-रोते पात्र आपके अपने हैं। इसलिए कहानियों की चेतना में मानवीय मूल्य, समानता, संघर्ष, स्त्री, पुरुष, शिक्षा, प्रकृति, पशु-पक्षी, अंततः रिक्तता से भर देने वाली विकास की अंधी दौड़ और आज का सोशल मीडिया स्वतः ही आ गए हैं। आपको इनमें समय के साथ बदले हुए पुरुष और सास-बहु के संबंधों की दस्तक भी सुनाई देगी और परिवारों की मिठास का संरक्षण भी। इन कहानियों में गैर ज़रूरी को तोड़ना और ज़रूरी को बचा लेने का प्रयास भर है।