प्रकृति सदैव से ही मानव की सहचरी रही है। आदिम सभ्यता से अब तक का इतिहास मानव व प्रकृति के सहसंबंधों का इतिहास है। मनुष्य ने प्रकृति से आश्रय पाया, उदर पूर्ति की और प्रकृति के सान्निध्य में साहित्य साधना की। वैदिक साहित्य, आर्ष साहित्य तथा साहित्य के अद्यतन धाराओं में आलंबन, उद्दीपन, उपमा, रूपक विविध रूपों में प्रकृति एवं पारिस्थतिकी का चित्रण हुआ है। लेकिन समय की विकास यात्रा के साथ इन संबंधों में विचलन भी आया जिसका चित्रण भी साहित्य की विविध विधाओं में हुआ है । पर्यावरण और पारिस्थितिक अंतर्संबंधों को व्यक्त करती यह पुस्तक भी भावपूर्ण कविताओं का संग्रह है, जो प्रकृति और मनुष्य के बीच संबंधों को दर्शाती �... See more
प्रकृति सदैव से ही मानव की सहचरी रही है। आदिम सभ्यता से अब तक का इतिहास मानव व प्रकृति के सहसंबंधों का इतिहास है। मनुष्य ने प्रकृति से आश्रय पाया, उदर पूर्ति की और प्रकृति के सान्निध्य में साहित्य साधना की। वैदिक साहित्य, आर्ष साहित्य तथा साहित्य के अद्यतन धाराओं में आलंबन, उद्दीपन, उपमा, रूपक विविध रूपों में प्रकृति एवं पारिस्थतिकी का चित्रण हुआ है। लेकिन समय की विकास यात्रा के साथ इन संबंधों में विचलन भी आया जिसका चित्रण भी साहित्य की विविध विधाओं में हुआ है । पर्यावरण और पारिस्थितिक अंतर्संबंधों को व्यक्त करती यह पुस्तक भी भावपूर्ण कविताओं का संग्रह है, जो प्रकृति और मनुष्य के बीच संबंधों को दर्शाती है, निहित चिंताओं को प्रकट करती है, और साथ ही एक विमर्श की ओर आवाह्न करती है।