इंसानी ज़िन्दगी लगातार विकसित होती रही है जो समय का बुनियादी सच है, इस विकास के जुलूस में ज़बान की बहुत सी शक्लें और आवाज़ें मिटती और नई शक्लें और आवाज़ें उभरती रहती हैं जिन्हें वापस नहीं लाया जा सकता। लेकिन फिर भी हम समय के बहाव में चली जाने वाली अपनी सांस्कृतिक और भाषाई विरासत को सहेजने और समेटने का काम तो कर ही सकते हैं। ये किताब भी इसी उर्दू विरासत को महफ़ूज़ रखने की एक कोशिश है। इस शब्दकोश में आज से कोई सौ-डेढ़ सौ साल पहले तक उर्दू कल्चर का प्रतिनिधित्व करने वाली शब्दावली को संकलित किया गया है। इस शब्दावली में, उस ज़माने में आम और ख़ास लोगों की ज़िन्दगी, ज़िन्दगी गुज़ारने के तरीक़ों, विभिन्न सामाजिक, सांस्क... See more
इंसानी ज़िन्दगी लगातार विकसित होती रही है जो समय का बुनियादी सच है, इस विकास के जुलूस में ज़बान की बहुत सी शक्लें और आवाज़ें मिटती और नई शक्लें और आवाज़ें उभरती रहती हैं जिन्हें वापस नहीं लाया जा सकता। लेकिन फिर भी हम समय के बहाव में चली जाने वाली अपनी सांस्कृतिक और भाषाई विरासत को सहेजने और समेटने का काम तो कर ही सकते हैं। ये किताब भी इसी उर्दू विरासत को महफ़ूज़ रखने की एक कोशिश है। इस शब्दकोश में आज से कोई सौ-डेढ़ सौ साल पहले तक उर्दू कल्चर का प्रतिनिधित्व करने वाली शब्दावली को संकलित किया गया है। इस शब्दावली में, उस ज़माने में आम और ख़ास लोगों की ज़िन्दगी, ज़िन्दगी गुज़ारने के तरीक़ों, विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और व्यावसायिक गतिविधियों से सम्बन्धित शब्द और मुहावरे शामिल किए गए हैं।