प्रस्तुत किताब वस्तुत% दलित केंद्रित विमर्श और विचार/ाारात्मक संघर्ष के क्रम में लिखे निबं/ाों का संकलन है । ये निबं/ा अलग–अलग समय पर लिखे गए थे । इधर–उ/ार बिखरे हुए थे । दलित साहित्यालोचना से जुड़े उन पक्षों की यहां पर विस्तृत आलोचना मिलेगी जिन पर विगत पचास साल से बहस हुई है । ये निबंध दलित साहित्यालोचना के नए आयामों को उद्घाटित करते हैं । दलित साहित्य को यहां विमर्श के बाहर विचार/ाारा की अव/ाारणाओं और फ्रेमवर्क में विश्लेषित किया गया है । आशा है, दलित साहित्य के अ/ययन में यह पुस्तक मददगार साबित होगी ।