अटलजी का मानना है कि साहित्य और राजनीति के अलग-अलग खाने नहीं हैं, और जब कोई साहित्यकार राजनीति करेगा तो वह अधिक परिष्कृत होगी, होनी चाहिए। अपने कार्य-काल में उन्होंने यह करके भी दिखा दिया और देश ही नहीं, दुनिया भर को चकित कर दिया। उन्होंने दिखा दिया कि— कवि-प्रधानमंत्री ही शांति के लिए पश्चिम तथा पूर्व दोनों दिशाओं में बस यात्रा की जोखिम उठा सकता है; युद्ध होने पर वही संयम बनाए रखकर उसी के सहारे न केवल लड़ाई जीत सकता है बल्कि दुनिया-भर की प्रशंसा भी प्राप्त कर सकता है; कवि-प्रधानमंत्री ही चुनाव के धुआंधार में सन्तुलन का सन्देश निरन्तर देता रह सकता है; और उसके बाद बाज़ी जीतकर भी सबको फिर से मिल-जुलकर काम करने की प�... See more
अटलजी का मानना है कि साहित्य और राजनीति के अलग-अलग खाने नहीं हैं, और जब कोई साहित्यकार राजनीति करेगा तो वह अधिक परिष्कृत होगी, होनी चाहिए। अपने कार्य-काल में उन्होंने यह करके भी दिखा दिया और देश ही नहीं, दुनिया भर को चकित कर दिया। उन्होंने दिखा दिया कि— कवि-प्रधानमंत्री ही शांति के लिए पश्चिम तथा पूर्व दोनों दिशाओं में बस यात्रा की जोखिम उठा सकता है; युद्ध होने पर वही संयम बनाए रखकर उसी के सहारे न केवल लड़ाई जीत सकता है बल्कि दुनिया-भर की प्रशंसा भी प्राप्त कर सकता है; कवि-प्रधानमंत्री ही चुनाव के धुआंधार में सन्तुलन का सन्देश निरन्तर देता रह सकता है; और उसके बाद बाज़ी जीतकर भी सबको फिर से मिल-जुलकर काम करने की प्रेरणा दे सकता है। इस प्रकार वे राजनीति के साथ कविता को भी एक बिलकुल नया आयाम देते प्रतीत होते हैं। अनेक वर्षों की घनघोर उठा-पटक के बाद अटलजी देश को स्थायी शासन देने में सफल रहे। इस अवसर पर एक बिलकुल नई दृष्टि से उनकी कविताओं को पढ़ना निश्चय ही सभी के लिए श्रेयस्कर है। इसमें है उनके समग्र कृतित्व से चुनी हुई रचनाएँ जो न केवल आपको रस विभोर करेंगी अपितु, सोचने पर भी विवश करेंगी। साथ ही, अटलजी के बहुआयामी व्यक्तित्व पर कन्हैयालाल नंदन का विस्तृत विवेचनात्मक आलेख उनकी अपनी विशिष्ट शैली में।