यह उपन्यास श्री राधेश्याम जायसवाल जी से सम्बन्धित, एक आश्चर्यचकित कर देने वाली ली तथा साथ में रोंगटे खड़े कर देने वाली घटना के बारे में है। उनकी उम्र बस 48 वर्ष थी। वैसे तो यह अधेड़ उम्र मनमानी करने की ही होती है, पर ऐसी मनमानी भी क्या जो व्यक्ति को एक अप्रत्याशित मनोस्थिति में उलझा। दे। खैर, पूरी घटना थोड़ी देर में बताते हैं। संक्षेप में हम राधेश्याम जायसवाल साहब को जायसवाल साहब ही कहेंगे। बात शुरू करते हैं जब जायसवाल साहब 22 वर्ष के छरहरे जवान युक्क थे। देखने-सुनने में वे बहुत अच्छे थे और वे बहुत ही रंगीन मिजाज के व्यक्ति थे। महिला हो या पुरुष, बच्चे हो या बूढ़े, सभी से हँस-बोल लेते थे। कभी-कभी तो लड़कियों से ऐसी र... See more
यह उपन्यास श्री राधेश्याम जायसवाल जी से सम्बन्धित, एक आश्चर्यचकित कर देने वाली ली तथा साथ में रोंगटे खड़े कर देने वाली घटना के बारे में है। उनकी उम्र बस 48 वर्ष थी। वैसे तो यह अधेड़ उम्र मनमानी करने की ही होती है, पर ऐसी मनमानी भी क्या जो व्यक्ति को एक अप्रत्याशित मनोस्थिति में उलझा। दे। खैर, पूरी घटना थोड़ी देर में बताते हैं। संक्षेप में हम राधेश्याम जायसवाल साहब को जायसवाल साहब ही कहेंगे। बात शुरू करते हैं जब जायसवाल साहब 22 वर्ष के छरहरे जवान युक्क थे। देखने-सुनने में वे बहुत अच्छे थे और वे बहुत ही रंगीन मिजाज के व्यक्ति थे। महिला हो या पुरुष, बच्चे हो या बूढ़े, सभी से हँस-बोल लेते थे। कभी-कभी तो लड़कियों से ऐसी रंगीन भाषा में हँसी-मजाक करते कि वे असहज हो जाती। उनका स्थायी निवास स्थान, जिला चूरू, प्रदेश राजस्थान में था। वहाँ के लोग बहुत ही शांतप्रिय, मिलनसार और धार्मिक प्रकृति के होते हैं। राधेश्याम जी का खाता-पीता परिवार है। वे धनाढ्य वैश्य परिवार से थे और उनकी एक बहुत ही बड़ी पुश्तैनी किराना की दुकान सरदार शहर, जिला चूरू में ही है। काम बहुत बड़ा है और दूर-दूर तक फैला है और शहर में उनके पूर्वजों की बहुत इज्जत और बड़ा नाम है। जायसवाल साहब का एक छोटा भाई भी है। दोनों भाई मिलकर पिताजी के साथ व्यवसाय को सम्भालते हैं। i इसी पुस्तक से... इधर जमुना को अपने पापा से बहुत उपेक्षा झेलनी पड़ती थी। वे जमुना से ठीक से बात भी नहीं करते थे। जमुना जब-जब उनसे प्यार से बात करने की कोशिश करती तो वे उसे झिड़क देते थे। जायसवाल साहब जमुना को पसन्द नहीं करते थे। इसलिये वे उसके गुणों और आदतों को लेकर हर बार एक टैग दे देते थे। अब उसका रंग साँवला था, जो वास्तव में जायसवाल साहब की ही देन थी, पर वे जमुना को सबके सामने ही कल्लो कहते थे। वैसे तो जमुना पढ़ने में होशियार थी, पर कोई नया सवाल आ जाये और वह अगर जायसवाल साहब के पास जाती तो वे उसे डफर कहते थे। अगर जमुना कोई सामान लाने में जरा भी देर कर दे, चाहे वह समय से ही लायी हो, पर जायसवाल साहब जमुना को तव कछुई ही कहकर अपमानित करते। शायद यह हर व्यक्ति की अन्तर्निहित कमजोरी होती है कि जिसे वह पसन्द नहीं करता उसकी अच्छी आदतें भी चुरी लगती है और जिसे वह पसन्द करता है... इसी पुस्तक से....