आजादी के सुनहरे भविष्य के लालच में देश की जनता ने विभाजन का जहरीला घूँट पी तो लिया, पर इस सवाल का जवाब आज तक नहीं मिल पाया कि क्या भारत का बँटवारा इतना ही जरूरी था? आखिर ऐसे क्या कारण थे, जिनकी वजह से देश दो टुकड़ों में बँट गया? ब्रिटेन की छलपूर्ण नीति? मुस्लिम लीग की फूटनीति? भारतीय जनता में दृढ़ता और सामथ्र्य का अभाव? कांग्रेस की गैर-जिम्मेदाराना भूमिका? या फिर गांधीजी की अहिंसा? कौन थे इसके लिए जिम्मेदार? हिंदू-मुसलमान एक-साथ क्यों नहीं रह सके? तब देश का शीर्षस्थ नेतृत्व क्या कर रहा था? क्या थी भूमिका उनकी? कहाँ थे इस विभाजन के बीज?... प्रख्यात कथाकार प्रियंवद ने इस पुस्तक में ऐसे तमाम सवालों के जवाब खोजने का श्रम किया ... See more
आजादी के सुनहरे भविष्य के लालच में देश की जनता ने विभाजन का जहरीला घूँट पी तो लिया, पर इस सवाल का जवाब आज तक नहीं मिल पाया कि क्या भारत का बँटवारा इतना ही जरूरी था? आखिर ऐसे क्या कारण थे, जिनकी वजह से देश दो टुकड़ों में बँट गया? ब्रिटेन की छलपूर्ण नीति? मुस्लिम लीग की फूटनीति? भारतीय जनता में दृढ़ता और सामथ्र्य का अभाव? कांग्रेस की गैर-जिम्मेदाराना भूमिका? या फिर गांधीजी की अहिंसा? कौन थे इसके लिए जिम्मेदार? हिंदू-मुसलमान एक-साथ क्यों नहीं रह सके? तब देश का शीर्षस्थ नेतृत्व क्या कर रहा था? क्या थी भूमिका उनकी? कहाँ थे इस विभाजन के बीज?... प्रख्यात कथाकार प्रियंवद ने इस पुस्तक में ऐसे तमाम सवालों के जवाब खोजने का श्रम किया है|