अध्यात्म ज्ञान सार Essence of Spiritual Knowledge (in Hindi)
एक स्वतंत्र व स्वाधीन मनुष्य को भी अपने धर्म और कर्म का निर्वाह करना पड़ता है, अन्यथा वही स्वतंत्रता अधर्म व पाप में परिवर्तित हो जाता है और अंतः वही स्वतंत्रता दुख का कारण बनता है।
न तो कर्म को त्याग कर कोई कर्म फल से छुटकारा पा सकता है, और न केवल संन्यास धारण करके सिद्धि प्राप्त की जा सकती है। प्रत्येक मनुष्य को अपने अर्जित गुणों के अनुसार विवश होकर कर्म करना ही पड़ता है, इसमें तनिक भी संदेह नहीं।
विवेकवान मनुष्य अपने बुद्धि से कार्य करता है और वह बुद्धि द्वारा अपने मन और इंद्रियों को नियंत्रण में रखता है।
जिस मनुष्य ने अपने मन और इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर लिया �... See more
अध्यात्म ज्ञान सार Essence of Spiritual Knowledge (in Hindi)
एक स्वतंत्र व स्वाधीन मनुष्य को भी अपने धर्म और कर्म का निर्वाह करना पड़ता है, अन्यथा वही स्वतंत्रता अधर्म व पाप में परिवर्तित हो जाता है और अंतः वही स्वतंत्रता दुख का कारण बनता है।
न तो कर्म को त्याग कर कोई कर्म फल से छुटकारा पा सकता है, और न केवल संन्यास धारण करके सिद्धि प्राप्त की जा सकती है। प्रत्येक मनुष्य को अपने अर्जित गुणों के अनुसार विवश होकर कर्म करना ही पड़ता है, इसमें तनिक भी संदेह नहीं।
विवेकवान मनुष्य अपने बुद्धि से कार्य करता है और वह बुद्धि द्वारा अपने मन और इंद्रियों को नियंत्रण में रखता है।
जिस मनुष्य ने अपने मन और इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर लिया है वही मनुष्य परम बुद्धिमान है, उसी ने वास्तव में शांति प्राप्त कर ली है और शांति में ही वास्तविक सुख और आनंद है।
मनुष्य की इच्छा व कामना कभी संतुष्ट नहीं होती है। जब एक इच्छा पूर्ण होती है तो दूसरी इच्छा तत्क्षण ही जन्म ले लेती है। इच्छाओं का कभी कोई अंत नहीं होता है।
समाज में न्याय व सुरक्षा व्यवस्था ऐसा होना चाहिए जिससे सारे प्राणी सुख व शांति से आपना जीवन व्यतीत करते रहें और प्रत्येक जीव स्वयं को सुरक्षित महसूस करे जिससे उनमें किसी भी प्रकार का भय ना हो।