लेखन से दुनिया बदलेगी यह गलतफहमी तो नहीं है परन्तु कुछ सोचने को लोग जरूर विवश होते हैं । परिवर्तन आहिस्ता आहिस्ता ही आते हैं समाज में। एक उपयोगी बैक्टीरिया की तरह इंसानी सोच कि मिट्टी में थोड़ा भी बदलाव ला पाया , थोड़ी भी उसकी सृजनात्मक उत्पादकता बढ़ा पाया तो अपना व्यंग्यकार होना सार्थक हुआ। इस फेसबुक, व्हाट्स एप के जमाने में किताब लिखना एक दुष्कर कार्य है। उसे पढ़ना उससे भी अधिक दुष्कर कार्य है। इस दुष्कर कार्य के लिए मैं आपकी सराहना करता हूँ। प्रशंसा की कोई उम्मीद करना व्यर्थ है। किसी किताब को पाठक पूरा पढ़ ले यही उस पुस्तक की प्रशंसा है।यह व्यंग्य सामाजिक पाखण्डों से लेकर राजनैतिक मतवादों तक विस्तृत हुआ �... See more
लेखन से दुनिया बदलेगी यह गलतफहमी तो नहीं है परन्तु कुछ सोचने को लोग जरूर विवश होते हैं । परिवर्तन आहिस्ता आहिस्ता ही आते हैं समाज में। एक उपयोगी बैक्टीरिया की तरह इंसानी सोच कि मिट्टी में थोड़ा भी बदलाव ला पाया , थोड़ी भी उसकी सृजनात्मक उत्पादकता बढ़ा पाया तो अपना व्यंग्यकार होना सार्थक हुआ। इस फेसबुक, व्हाट्स एप के जमाने में किताब लिखना एक दुष्कर कार्य है। उसे पढ़ना उससे भी अधिक दुष्कर कार्य है। इस दुष्कर कार्य के लिए मैं आपकी सराहना करता हूँ। प्रशंसा की कोई उम्मीद करना व्यर्थ है। किसी किताब को पाठक पूरा पढ़ ले यही उस पुस्तक की प्रशंसा है।यह व्यंग्य सामाजिक पाखण्डों से लेकर राजनैतिक मतवादों तक विस्तृत हुआ है, जिसके निहित अर्थ कभी सीधे वक्तव्यों या कभी नाटकीय स्थितियों के चयन से स्पष्ट होते है । सम्पूर्ण रचना प्रक्रिया वास्तव में अंर्तरावलोकित कला, विवेक तथा ज्ञान की अभिव्यक्ति होती है, जैसा कि सम्पूर्ण रचनाओं में स्पष्ट परिलक्षित है अपितु कई रचनाओं में अग्रणी भी प्रतीत हुआ है।