तांबा पत्र की बही (1838 ई.) का सम्पादन : संसार में शान्ति व सुव्यवस्था के लिये जन मानस में सनातन मूल्यों का महत्वपूर्ण स्थान है, जिससे जीव व प्रकृति की सुरक्षा होती है। भारतीय संस्कृति का मूल ही सनातन मूल्य है, जिससे समस्त मानवीय क्रिया-कलापों की दिशा तय होती है। इस प्रकार धर्म, अर्थ, राज में सामंजस्य, स्थापित किया गया। यहाँ पर राज का मूल उद्देश्य योग अर्थात् जनता में सनातन मूल्यों की रक्षा व संस्कृति का उच्च स्तरीय विकास रहा है। भारतीय संस्कृति की आत्मा मेवाड़ में है। यहाँ के राजवंशों ने अपने शासन का लक्ष्य ही सनातन मूल्यों की रक्षा कर संवर्द्धन व संरक्षण प्रदान करना रहा था। इसी के परिणामस्वरूप यहाँ के शासक करीब 14... See more
तांबा पत्र की बही (1838 ई.) का सम्पादन : संसार में शान्ति व सुव्यवस्था के लिये जन मानस में सनातन मूल्यों का महत्वपूर्ण स्थान है, जिससे जीव व प्रकृति की सुरक्षा होती है। भारतीय संस्कृति का मूल ही सनातन मूल्य है, जिससे समस्त मानवीय क्रिया-कलापों की दिशा तय होती है। इस प्रकार धर्म, अर्थ, राज में सामंजस्य, स्थापित किया गया। यहाँ पर राज का मूल उद्देश्य योग अर्थात् जनता में सनातन मूल्यों की रक्षा व संस्कृति का उच्च स्तरीय विकास रहा है। भारतीय संस्कृति की आत्मा मेवाड़ में है। यहाँ के राजवंशों ने अपने शासन का लक्ष्य ही सनातन मूल्यों की रक्षा कर संवर्द्धन व संरक्षण प्रदान करना रहा था। इसी के परिणामस्वरूप यहाँ के शासक करीब 1400 वर्षों से भारतीय संस्कृति के संवाहक के रूप में संसार में सम्मानित हुए। इस तांबा पत्र की बही के सम्पादन से प्रामाणिक रूप से काल के उक्त प्रयासों का अध्ययन है, जिससे मेवाड़ राज्य के सनातन मूल्यों की स्थापना के प्रयासों की रीति-नीति व व्यवस्था का सम्पूर्ण स्वरूप प्रकट होता है। समाज में सौहार्द, धर्म में उच्च आदर्श का मार्ग व राज में सेवा भाव की जानकारियाँ समाहित हैं। इसके प्रकाशन से शोधार्थियों व पाठकों के लिये शोधपूर्ण समसामयिक जानकारियाँ प्रकट होगी।