'सिन्धु से कावेरी' यादवों की उत्पत्ति तथा विकास यात्रा के शोध-परक प्रबंध के साथ ही भारत निर्माण एवं भारतीय जन की सभ्यता, भाषा-बोली, व्यवहार, सोच तथा मान्यताओं के विकास और उदार, समरस, शांतिपूर्ण सह अस्तित्व में विश्वास व समन्वय की उदात्त संस्कृति का दर्पण भी है। पुरा काल से आज तक सुमेर के ओफिर, तमिल के अयर, संस्कृत के आभीर, यादव, प्राकृत के अहीर एवं अनेक क्षेत्रीय भाषाओं में भिन्न-भिन्न अभिधान धारण करते हुए यादवों ने अपनी पहचान अक्षुण्ण रखी है। द्रविड़ प्रजाति के इस समुदाय की यह जीवन गाथा इतिहास, पुरातत्व, तत्व विज्ञान, भाषा विज्ञान, जनगणना, अनुवांशिकी, पुरा अनुवांशिकी के अद्यतन वैज्ञानिक गवेषणाओं के साथ ही परंप... See more
'सिन्धु से कावेरी' यादवों की उत्पत्ति तथा विकास यात्रा के शोध-परक प्रबंध के साथ ही भारत निर्माण एवं भारतीय जन की सभ्यता, भाषा-बोली, व्यवहार, सोच तथा मान्यताओं के विकास और उदार, समरस, शांतिपूर्ण सह अस्तित्व में विश्वास व समन्वय की उदात्त संस्कृति का दर्पण भी है। पुरा काल से आज तक सुमेर के ओफिर, तमिल के अयर, संस्कृत के आभीर, यादव, प्राकृत के अहीर एवं अनेक क्षेत्रीय भाषाओं में भिन्न-भिन्न अभिधान धारण करते हुए यादवों ने अपनी पहचान अक्षुण्ण रखी है। द्रविड़ प्रजाति के इस समुदाय की यह जीवन गाथा इतिहास, पुरातत्व, तत्व विज्ञान, भाषा विज्ञान, जनगणना, अनुवांशिकी, पुरा अनुवांशिकी के अद्यतन वैज्ञानिक गवेषणाओं के साथ ही परंपरा, रीति- रिवाज़, संस्कृत, तमिल तथा अन्य भाषाओं में उपलब्ध साक्ष्यों पर आधारित है। इस प्रबुद्ध समुदाय ने ईरान की जाग्रोस पहाड़ियों से आकर सिंधु सभ्यता का निर्माण किया और वहां से सम्पूर्ण भारत में फैलकर अनेक सभ्यताओं को जन्म दिया। इस ग्रन्थ में यादवों के पुरा इतिहास से लेकर वर्तमान तक का वर्णन है। यादवों के इतिहास के बारे में गिनी-चुनी पुस्तकों के बीच यह शोध परक रचना प्रकाश स्तम्भ ग्रन्थ का कार्य करेगी।