जिस विमर्श की चर्चा अभी हाल में ही शुरू हुई है उसे हम लैंगिक विमर्श के रूप में पहचानतें हैं। इसी विमर्श के दायरे में थर्ड जेंडर, हिजड़ा, छक्का आदि नामों से चल रहे विमर्श भी आते हैं। जहां तक लैंगिक विमर्श की बात है उसमें केवल थर्ड जेंडर की ही बात नहीं होनी चाहिए, इसके दायरे में तो स्त्री विमर्श भी आता है। वैसे थर्ड जेंडर पर बात करते हुए आज ‘गे’, ‘होमो सेक्सुअल’ और ‘समलिंगी’ आदि पर भी बात की जा रही है। इन सबको केंद्र में रखकर साहित्य भी लिखा जा रहा है। अपनी सामाजिक समस्याओं को समझने के जिस मुकाम पर आज हम खड़े हैं, वहां जेंडर, लिंग और सेक्स को लेकर तमाम भ्रांतियां हैं। इन भ्रांतियों से हमारे रचनाकार भी अछूते नहीं हैं। ख�... See more
जिस विमर्श की चर्चा अभी हाल में ही शुरू हुई है उसे हम लैंगिक विमर्श के रूप में पहचानतें हैं। इसी विमर्श के दायरे में थर्ड जेंडर, हिजड़ा, छक्का आदि नामों से चल रहे विमर्श भी आते हैं। जहां तक लैंगिक विमर्श की बात है उसमें केवल थर्ड जेंडर की ही बात नहीं होनी चाहिए, इसके दायरे में तो स्त्री विमर्श भी आता है। वैसे थर्ड जेंडर पर बात करते हुए आज ‘गे’, ‘होमो सेक्सुअल’ और ‘समलिंगी’ आदि पर भी बात की जा रही है। इन सबको केंद्र में रखकर साहित्य भी लिखा जा रहा है। अपनी सामाजिक समस्याओं को समझने के जिस मुकाम पर आज हम खड़े हैं, वहां जेंडर, लिंग और सेक्स को लेकर तमाम भ्रांतियां हैं। इन भ्रांतियों से हमारे रचनाकार भी अछूते नहीं हैं। खैर, यह तो एक अलग विषय हुआ। हिजड़ा समुदाय और उनकी दैहिक और सामाजिक समस्याओं को लेकर काफी कुछ लिखा पढ़ा जा रहा है और उनकी समस्याओं को नये-नये कोण से उठाने की कोशिश की जा रही है। हमारा ध्यान जब हिजड़ा समुदाय की समस्याओं की तरफ जाना शुरू ही हुआ था उसी समय नीरजा माधव का उपन्यास ‘यमदीप’ लिखा गया। यह उपन्यास और इसमें उठायी गयी समस्याएं इस मायने में विशिष्ट है कि लेखिका ने बनारस की हिजड़ा बस्तियों में घूम-घूम कर कथा सामग्री एकत्र की है। उसका यही प्रयास एक नई समस्या के लेखन को वैचारिक आधार प्रदान करता है और उसे अन्य कथाकारों से भिन्न बनाता है। - प्रो- ओमप्रकाश सिंह