गुनाहों का देवताधर्मवीर भारती के इस उपन्यास का प्रकाशन और इसके प्रति पाठकों का अटूट सम्मोहन हिन्दी साहित्य-जगत् की एक बड़ी उपलब्धि बन गये हैं। दरअसल, यह उपन्यास हमारे समय में भारतीय भाषाओं की सबसे अधिक बिकनेवाली लोकप्रिय साहित्यिक पुस्तकों में पहली पंक्ति में है। लाखों-लाख पाठकों के लिए प्रिय इस अनूठे उपन्यास की माँग आज भी वैसी ही बनी है जैसी कि इसके प्रकाशन के प्रारम्भिक वर्षों में थी । - और इस सबका बड़ा कारण शायद एक समर्थ रचनाकार की कोई अव्यक्त पीड़ा और एकान्त आस्था है, जिसने इस उपन्यास को एक अद्वितीय कृति बना दिया है।मेरे लिए इस उपन्यास का लिखना वैसा ही रहा है जैसा पीड़ा के क्षणों में पूरी आस्था से प्रार... See more
गुनाहों का देवताधर्मवीर भारती के इस उपन्यास का प्रकाशन और इसके प्रति पाठकों का अटूट सम्मोहन हिन्दी साहित्य-जगत् की एक बड़ी उपलब्धि बन गये हैं। दरअसल, यह उपन्यास हमारे समय में भारतीय भाषाओं की सबसे अधिक बिकनेवाली लोकप्रिय साहित्यिक पुस्तकों में पहली पंक्ति में है। लाखों-लाख पाठकों के लिए प्रिय इस अनूठे उपन्यास की माँग आज भी वैसी ही बनी है जैसी कि इसके प्रकाशन के प्रारम्भिक वर्षों में थी । - और इस सबका बड़ा कारण शायद एक समर्थ रचनाकार की कोई अव्यक्त पीड़ा और एकान्त आस्था है, जिसने इस उपन्यास को एक अद्वितीय कृति बना दिया है।मेरे लिए इस उपन्यास का लिखना वैसा ही रहा है जैसा पीड़ा के क्षणों में पूरी आस्था से प्रार्थना करना; और इस समय भी मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैं वह प्रार्थना मन-ही-मन दोहरा रहा हूँ, बसधर्मवीर भारतीबहुचर्चित लेखक एवं सम्पादक डॉ. धर्मवीर भारती 25 दिसम्बर, 1926 को इलाहाबाद में जनमे और वहीं शिक्षा प्राप्त कर इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्यापन-कार्य करने लगे। इसी दौरान कई पत्रिकाओं से भी जुड़े। अन्त में 'धर्मयुग' के सम्पादक के रूप में गम्भीर पत्रकारिता का एक मानक निर्धारित किया ।डॉ. धर्मवीर भारती बहुमुखी प्रतिभा के लेखक थे । कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, निबन्ध, आलोचना, अनुवाद, रिपोर्ताज आदि विधाओं को उनकी लेखनी से बहुत-कुछ मिला है। उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं : साँस की कलम से, मेरी वाणी गैरिक वसना, कनुप्रिया, सात गीत-वर्ष, ठण्डा लोहा, सपना अभी भी, सूरज का सातवाँ घोड़ा, बन्द गली का आख़िरी मकान, पश्यन्ती, कहनी अनकहनी, शब्दिता, अन्धा युग, मानव-मूल्य और साहित्य और गुनाहों का देवता ।भारती जी ‘पद्मश्री' की उपाधि के साथ ही 'व्यास सम्मान' एवं अन्य कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से अलंकृत हुए ।4 सितम्बर, 1997 को मुम्बई में देहावसान ।